अगर कोई इंसान, हिंदुस्तान के क़ुदरती तत्वों और मानव समाज को एक दर्शक के नज़रिए से फ़िल्म की तरह देखता है, तो ये मुल्क नाइंसाफ़ी की पनाहगाह के सिवा कुछ नहीं दिखेगा."डॉक्टर भीमराम आम्बेडकर ने 31 जनवरी 1920 को अपने अख़बार 'मूकनायक' के पहले संस्करण के लिए जो लेख लिखा था, ये उस का पहला वाक्य है. तब से बहुत कुछ बदल चुका है. लेकिन, बहुत कुछ जस का तस भी है.